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Can astrology predict and overcome obstacles in marriage?

  • Writer: Namaskar Astro by Acharya Rao
    Namaskar Astro by Acharya Rao
  • Sep 5, 2024
  • 4 min read

भारतीय संस्कृती में १६ संस्कार बताये गये है, जिसमे विवाह संस्कार का भी समावेश किया हुआ हैं, कई बार विवाह होने में बहुत सारे संकटों का सामना करना पडता है और कभी कभी शादी होने के बाद रिश्ते भी तुट जाते हैं, ऐसे लोगों को वैवाहिक जीवन का सुख नहीं मिल पाता यह सब कुछ ग्रहों के प्रभाव की वजह से होता हैं.

विवाह योग में सप्तम स्थान का महत्व

ज्योतिष शास्त्र के नुसार कुंडली में सप्तम स्थान की वजह से ही विवाह में देरी होती हैं और विघ्न भी आते हैं| कई बार इसी वजह से शादी होकर भी अच्छा जीवन साथी नहीं मिल पाता , कुंडली में सप्तम गृह यह दर्शाता हैं कि विवाह कब होगा, किस दिशा में विवाह होने की ज्यादा संभावना हैं , जब एक से अधिक अशुभ ग्रहों का सप्तम स्थान पर प्रभाव रहता हैं ,तब विवाह होने में देरी होती हैं.


इन ग्रह रचनाओं की वजह से उत्पन्न होती हैं बाधायें

अगर किसी ग्रह की दशा या अंतर्दशा विवाह के लिये उपयुक्त हो तो गोचर ग्रहों की भी जानकरी आवश्यक रहती हैं, जिसमे गुरु व शनी इनके सहाय्य की भी जरुरत रहती हैं| जब गुरु और शनी के गोचर से , सप्तम की दृष्टी से या उनकी स्थिती के संबंध से कुंडली में विवाह योग उत्पन्न होता हैं, तब जिस स्थान से ग्रहों का गोचर भ्रमण रहता है उस स्थान से संबंधित अष्टकवर्ग रेखा भी होनी चाहिए, अन्यथा गोचर ग्रहों की अनुकूलता होने से भी विवाह होने में देरी होती हैं, चंद्रमा व मंगल का संबंध पंचम या नवम स्थान होना चाहिए, शुभ व सुखी वैवाहिक जीवन के लाभ व व्यय स्थान भी शुभ रहने चाहिए, षष्ठ और दशम स्थान भी विवाह में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं.


शुभ ग्रह का परिणाम

चंद्रमा ,शुक्र, बुध व गुरु यह सभी शुभ ग्रह माने गये है| इनमे से कोई भी एक ग्रह यदि सप्तम स्थान पर हो तो विवाह में आने वाली सभी बाधाये समाप्त हो सकते हैं, अगर इन ग्रहों से अलग कोई और ग्रह भी हो तो विवाह में परेशानीया आती हैं.


सप्तम स्थान के परिणाम

राहू, मंगल, रवि , शनि इत्यादी अशुभ ग्रह माने गये है, इनमे से कोई भी ग्रह यदि सप्तम स्थान से किसी भो प्रकार से संबंध हो तो वह विवाह के लिये अशुभ ही माना जाता है.


सप्तम स्थान पर यदि बुध ग्रह हो तो विवाह जल्दी होने की संभावना होती हैं, यदि बुध ग्रह पर अन्य कोई भी ग्रह का प्रभाव ना हो तो २० से २५ की आयु तक विवाह का योग आता हैं.


अगर किसी के कुंडली में सप्तम स्थान पर शुक्र, गुरु या फिर चंद्रमा हो तो २४ से २५ की उम्र के बीच विवाह संपन्न हो सकता है.


विवाह में विलंब करने वाले योग

गुरु यदि सप्तम स्थान पर हो तो विवाह उम्र के २५ वे साल में होती हैं| गुरु पर यदि रवि या मंगल का प्रभाव हो तो साल दो साल का विलंब हो सकता है , और अगर राहू या शनी का प्रभाव हो तो २ साल से भी ज्यादा का विलंब हो सकता है.


यदि शुक्र ग्रह सप्तम स्थान पर हो और उसपर यदि रवि या मंगल का प्रभाव हो, तो भी विवाह 2 साल तक आहे जा सकता है| इसीप्रकार शुक्र पर यदि शनि का प्रभाव हो तो एक साल और राहू का प्रभाव हो तो शादी को दो साल तक विलंब हो सकता है.


चंद्रमा सप्तम स्थान पर होकर उसपर मंगल या रवि इनमे से कोई भी एक ग्रह का प्रभाव हो, तो शादी उम्र के छब्बिसवे साल में होने की संभावना रहती हैं , इसीप्रकार शनि का प्रभाव मंगल पर होने से विवाह में तीन साल तक विलंब हो सकता है, और राहू का प्रभाव हो तो सत्ताईस वे साल की उम्र में विवाह हो सकता है पर उसमे में भी बहुत से विघ्न आते हैं.


मंगल, राहू और केतु इनमे से कोई एक ग्रह भी यदि सप्तम स्थान पर हो, तो वैवाहिक जीवन का सुख मिलने में बहुत देर होती हैं.


मंगल दोष भी एक बडा कारण हैं, जिसकी वजह से भी विवाह में देरी होती हैं, और वैवाहिक जीवन में स्त्रीसुख का नाश भी करता हैं .


विवाह में सहायता करने वाले योग

सप्तम स्थान पर शुभ ग्रह या गुरु, शुक्र इत्यादी ग्रहों की दृष्टी आने से विवाह की समास्याये नष्ट होने में मदद होती हैं|सप्तमेश केंद्र या त्रिकोण में रहने से भी विवाहकारक होता हैं, भाग्येश सप्तम स्थान पर या फिर सप्तमेश भाग्य में रहने से भी विवाह हो जाता है.


जीवनसाथी की आर्थिक स्थिती

यदि चतुर्थेश अधिपती की युती में या फिर उसकी दृष्टी में हो तो जीवनसाथी व्यावसायिक रहता हैं .

इसीप्रकार यदि सप्तमेश द्वितीय, पंचम, भाग्य, दशम या लाभ के स्थान पर हो और चंद्रमा, बुध या फिर शुक्र इनमे से कोई भी सप्तमेश हो, तो साथीदार बिझनेस में होशियार रहता है.

यदि अपने कुंडली में चतुर्थेश द्वितीय या फिर व्यय स्थान पर हो, तो जीवनसाथी नोकरी करने वाला रहता है, अगर सप्तमेश और चतुर्थेश नवमांश कुंडली में उच्च या स्वराशीस हो, परस्पर मिलाव या फिर दृष्टी में हो तो जोडीदार नोकरी में उच्चाधिकारी के पद पर रहता है.

यदि शनि का संबंध चतुर्थ से होता हो तो साथीदार नोकरी करने वाला रहता है.

कुंडली में सप्तम स्थान पर अगर राहू या केतु हो| सप्तमेश सप्तम, अष्टम या फिर व्यय स्थान पर हो, और नवमांश कुंडली में बलहीन हो तो जीवनसाथी सामान्य नोकरी करने वाला रहता है .


जीवनसाथी कैसा होगा

जन्म कुंडली में सप्तमेश अगर चतुर्थ, पंचम, भाग्य या दशम स्थान पर स्थित हो तो साथीदार अच्छे परिवार से रहता है .

यदि सप्तमेश उच्च स्थान का हो और केंद्र में या फिर त्रिकोण में स्थित हो|तो जीवनसाथी शिक्षित, धनवान व प्रतिष्ठित युक्त रहता है.




 
 
 

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