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हनुमान जी के जन्म से जुड़ी रोचक कथा

  • Apr 11
  • 2 min read

कल यानि 12 अप्रैल 2025 को हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाएगा, कही लोग उसे हनुमान जयंती भी बुलाते है लेकिन यह बिल्कुल गलत है, जयंती शब्द उन लोगों के लिए उपयोग किया जाता है जो जीवित नहीं है पर हनुमान जी तो अमर है, आज भी वो इस संसार मे हाजिर है तो उन के जन्म दिन के लिए जन्मोत्सव शब्द प्रयोग होना चाहिए।

पुराणों और धर्मग्रंथों में हनुमानजी के जन्म को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक कथा बहुत ही रोचक है। कथा के अनुसार, माता अंजनी को यह वरदान मिला हुआ था कि उनका होने वाला पुत्र शिव का अंश होगा और यही कारण है कि हनुमानजी को शिव का अवतार भी माना जाता है। एक मान्यता यह भी है कि जब हनुमान जी का जन्म हुआ था, तो उसी समय रावण के घर भी एक पुत्र ने जन्म लिया था। यह महज एक संयोग नहीं था बल्कि यह दुनिया में अच्छाई और बुराई का संतुलन बनाए रखने के लिए हुआ था।


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हनुमान जी के जन्म का सम्बन्ध अयोध्या से

एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब अयोध्या के राजा दशरथ अपनी पत्नियों के साथ पुत्र प्राप्ति के लिए हवन कर रहे थे, तो हवन में उन्हें एक खीर दी गयी। उन्हें कहा गया कि यह वो अपनी रानियों को खिला दें। हवन समाप्ति के बाद राजा दशरथ ने खीर तीनों रानियों में थोड़ी-थोड़ी बांट दी लेकिन तभी खीर का एक भाग एक कौआ अपने साथ उड़ा ले गया और उसने उसे वहाँ गिरा दिया जहाँ अंजनी मां तपस्या कर रही थी। तपस्या करती हुई अंजना के हाथ में जब खीर गिरी, तो उन्होंने उसे शिवजी का प्रसाद समझ कर ग्रहण कर लिया। कहते हैं कि इसी प्रसाद की वजह से अयोध्या में रामजी का जन्म हुआ और अंजनी की कोख से हनुमानजी का। इस तरह प्रभु और भक्त दोनों एकसाथ एक ही प्रसाद से इस धरती पर अवतरित हुये और उनका एक अनोखा सम्बन्ध जन्म से ही बन गया।


जब माता अंजना एक श्राप से अप्सरा से वानरी बन गईं और फिर दिया हनुमान जी को जन्म

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सभी लोग देवराज इंद्र की सभा में उपस्थित थे, जहां ऋषि दुर्वासा भी थे। वहाँ देवराज इंद्रा की एक अप्सरा पुंजीकस्थली बार-बार सभा के बीच से आना-जाना कर रही थी, जिससे ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए और उन्होंने अप्सरा पुंजीकस्थली को वानरी बन जाने का श्राप दे दिया। पुंजीकस्थली ने बहुत क्षमा माँगी लेकिन ऋषि ने अपना श्राप वापस नहीं लिया। हाँ, उन्होंने बाद में दयावश उसे यह वर जरूर दिया कि वह अपनी इच्छा अनुसार रूप धारण कर सकती है।

इस घटना के कुछ सालों बाद पुंजीकस्थली ने वानर श्रेष्ठ विरज के घर जन्म लिया। उसका नाम अंजनी रखा गया। जब अंजनी विवाह योग्य हुई, तो उनका विवाह केसरी से कर दिया गया। कहते हैं कि राजा केसरी को ऋषियों की प्राणरक्षा करने के बदले यह वरदान मिला हुआ था कि उन्हें एक ऐसा पुत्र प्राप्त होगा, जो अपनी इच्छानुसार रूप धारण कर सकें और जो वायु के समान पराकर्मी और रुद्र के समान हो। फिर ऐसे हुआ हनुमान जी का जन्म।

 
 
 

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